Rajasthan ki Famous Holi | राजस्थान की प्रसिद्ध होली | राजस्थान में लठमार होली कहां खेली जाती है | कोड़ामार होली इन राजस्थान | बादशाह की होली कहां की प्रसिद्ध है |
राजस्थान के कई जिलों की ऐसी होली खेली जाती है जो देशभर में प्रसिद्ध है. डूंगरपुर जिले में होली के दिन जिले के कोकापुर गांव में लोग होलिका के दहकते अंगारों पर नंगे पांव चलते हैं तो श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ में कोड़ामार होली खेलने की परंपरा सालों से चल रही है.
Rajasthan ki Famous Holi
1 रोने- बिलखने वाली होली = जोधपुर
2 गोबर के कंडो की होली = गलियाकोट (डूंगरपुर)
3 राड रमण की होली = भिलुड़ा ग्राम (डूंगरपुर)
4 पत्थर मार होली = बाड़मेर
5 लठमार होली = श्री महावीरजी चांदन गांव (करौली)
6 डेगची या बाल्टी मार होली = बीकानेर
7 कोडा मार होली = भिनाय(अजमेर)
8 दूध व दही की होली = नाथद्वारा (राजसमंद)
9 बादशाह की होली = नाथद्वारा (राजसमंद)
10 अंगारों की होली = केकड़ी (अजमेर)+ लालसोट ( राजसमंद)
11 देवर भाभी की होली = ब्यावर (अजमेर)
12 नहान की होली = सांगोद (कोटा)
13 मुर्दों की होली = मरुधनी (भीलवाड़ा)
14 फूलों की होली = गोविंद देव जी मंदिर (जयपुर)
15 कंकड़ मार होली = जैसलमेर
16 भाटा गैर = जालौर
17 कानुडा गांव का गैर नृत्य = बाड़मेर
18 गोटा गैर = भीनमाल
19 ब्रज होली = भरतपुर
राजस्थान की होली
फाल्गुन महीने की शुरूआत के साथ ही हवाओं में होली (holi) के रंग और अबीर गुलाल उड़ने लगा है. बाजार रंगों से सजे हैं. दुकानों पर मिठाई लेने के लिये लोग कतार में खड़े हैं. होली (holi celebration) का खुमार लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है. देश के अलग-अलग राज्यों में होली खेलने के अपने तरीके हैं. कहीं लोग अपनी पुरानी परंपराओं से होली खेलते हैं तो कहीं रंग लगाने के अनोखे तरीके भी हैं. वहीं रंगों से होली खेलना तो होली पर आपने सुना ही होगा लेकिन आज हम आपको राजस्थान (rajasthan) के कई जिलों की ऐसी होली के बारे में बताएंगे जो कहीं और देखने को नहीं मिलते हैं. राज्य के कई जिलों में रंगों से तो कहीं फूलों के साथ होली (phulon ki holi) खेली जाती है. आइए जानते हैं राजस्थान के इन जिलों की होली इतनी खास क्यों है.
अंगारों पर चलकर मनाते हैं होली
राज्य के डूंगरपुर जिले की होली सबसे अनोखी मानी जाती है, यहां वांगड़वासी होली के एक महीने पहले ही तैयारियों में जुट जाते हैं और होली के खुमार में मस्त हो जाते हैं. होली के दिन जिले के कोकापुर गांव में लोग होलिका के दहकते अंगारों पर नंगे पांव चलने की परंपरा आज भी निभाते हैं. लोगों का मानना है कि होलिका दहन के अंगारों पर चलने से घर में कोई भी विपदा नहीं आती है.
राजस्थान की पत्थरमार और लट्ठमार होली
डूंगरपुर में ही भीलूड़ा में खूनी होली काफी चर्चा में रहती है. यहां पिछले 200 साल से धुलंडी पर लोग खतरनाक पत्थरमार होली खेल रहे हैं. डूंगरपुर के लोग रंगों के स्थान पर पत्थर बरसा कर खून बहाने को होली के दिन शगुन मानते हैं. इस दिन भारी संख्या में लोग स्थानीय रघुनाथ मंदिर परिसर में आते हैं और दो टोलियों बनाकर एक दूसरे पर पत्थर बरसाना शुरू कर देते हैं. इस खेल में घायल लोगों को तुरंत अस्पताल भी भर्ती करवाया जाता है. इसके अलावा मथुरा के लगता जिला होने के चलते भरतपुर और करौली के नंदगाव में लोग आज भी लठ्ठमार होली खेलते हैं.
फूलों वाली होली
राजधानी जयपुर के गोविंददेव मंदिर में होली का त्योहार काफी धूमधाम और जोश से मनाते हैं. मंदिर में लोग गुलाब और अन्य फूलों से होली खेलते हैं जिस दौरान राधा-कृष्ण के प्रेमलीला का मनोहर मंचन भी किया जाता है. बता दें कि इस बार होली पर गोविंद देव मंदिर में 200 किलो फूलों से होली पर्व की शुरुआत हुई है.
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राजस्थान की कोड़ामार होली

वहीं श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ में कोड़ामार होली खेलने की परंपरा सालों से चल रही है. यहां लोग ढ़ोल की थाप पर टोली में रंग-गुलाल उड़ाते हुए होली खेलते हैं. इसके बाद महिलाओं की टोली कपड़े को कोड़े की तरह लपेट कर रंग में भिगोकर पुरुषों को मारती है. इधर राजस्थान के शेखावाटी इलाके में होली पर चंग और महरी नृत्य करने की परंपरा चलती है जहां पुरुष चंग को एक हाथ से थामकर और दूसरे हाथ से थपकियां बजाकर सामूहिक नाच करते हैं. इसमें शामिल होने वाले कलाकार महिला का वेश भी धारण कर नाचते हैं जिन्हें ‘महरी’ कहते हैं.
चंग व महरी नृत्य (सीकर, चूरू, झुंझुनूं)
राजस्थान में शेखावाटी की होली का अलग ही रंग है. पुरुष चंग को अपने एक हाथ से थामकर और दूसरे हाथ की थपकियों से बजाते हुए वृत्ताकार घेरे में सामूहिक नृत्य करते हैं. पैरों में बंधे हुए घुंघरुओं की रुनझुन के साथ बांसुरी और झांझ की सुमधुर आवाजें निकलती रहती हैं. भाग लेने वाले कलाकार पुरुष ही होते हैं, किंतु उनमें से कुछ कलाकार महिला वेश धारण कर लेते हैं, जिन्हें ‘महरी’ कहा जाता है. चूड़ीदार पायजामा-कुर्ता या धोती-कुर्ता में होली की अलग ही छटा नजर आती है.
गोटा गैर व डोलची होली ( बीकानेर, भीनमाल)
डोलची होली की बीकानेर में और गोटा गैर की भीनमाल, सिरोही आदि में परंपरा है. गोटा गैर होली में पुरुष मंडली समूह में हाथों में डंडे लेकर नृत्य करते हैं. हालांकि अब इस परंपरा से नया चलन आ गया है. बीकानेर में होली एक अनूठे रूप में खेली जाती है. यहां दो गुटों में पानी डोलची होली खेली जाती है. जहां चमड़े की बनी डोलची में पानी भरकर एक-दूसरे गुटों पर डाला जाता है. इस होली में सैकड़ों लोग भाग लेते हैं.