Gangaur Festival Rajasthan | गणगौर पर्व राजस्थान | Gangaur Festival in hindi | Gangaur Festival in jaipur | Gangaur Festival date | गणगौर त्यौहार का महत्त्व, पूजा विधि, कथा जाने
Gangaur Festival Rajasthan: राजस्थान शुरुआत से ही पर्व ओर त्योहारों का प्रदेश माना जाता है । जहाँ राजस्थान की महिलाएं बड़ी श्रद्धा के साथ इस गणगौर पर्व को धूमधाम से मनाती है।
गणगौर पर्व भारत के राजस्थान में मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक है। राजस्थान के अलावा यह पर्व गुजरात, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, तेलंगाना आदि प्रदेशों के कुछ भागों में मनाया जाता है। हालांकि अन्य जगहों के अपेक्षा राजस्थान में इस पर्व को काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। गणगौर का यह पर्व भगवान शिव तथा माता पार्वती को समर्पित है, जोकि होली के दिन से शुरु होकर इसके अगले 16 दिनों तक चलता है।
गणगौर पर्व राजस्थान
भारत रंगों भरा देश है. उसमे रंग भरते है उसके , भिन्न-भिन्न राज्य और उनकी संस्कृति. हर राज्य की संस्कृति झलकती है उसकी, वेश-भूषा से वहा के रित-रिवाजों से और वहा के त्यौहारों से. हर राज्य की अपनी, एक खासियत होती है जिनमे, त्यौहार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. भारत का एक राज्य राजस्थान, जो मारवाड़ीयों की नगरी है और, गणगौर मारवाड़ीयों का बहुत बड़ा त्यौहार है जो, बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है ना केवल, राजस्थान बल्कि हर वो प्रदेश जहा मारवाड़ी रहते है, इस त्यौहार को पूरे रीतिरिवाजों से मनाते है.।
गणगौर त्यौहार कब मनाया जाता है और शुभ मुहूर्त कब है (Gangaur Festival Date and Shubh Muhurt)
होली के दूसरे दिन से सोलह दिनों तक लड़कियां प्रतिदिन प्रातः काल ईसर-गणगौर को पूजती हैं। जिस लड़की की शादी हो जाती है वो शादी के प्रथम वर्ष अपने पीहर जाकर गणगौर की पूजा करती है। इसी कारण इसे सुहागपर्व भी कहा जाता है।
इस वर्ष 2023 में गणगौर का त्यौहार 8 मार्च से मनाया जायेगा.
Gangaur Festival in Rajasthan
गणगौर पर्व क्यों मनाया जाता है? (Why Do We Celebrate Gangaur Festival)
महिलाएं गणगौर के त्योहार को बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाती हैं, देवी पार्वती/गौरी से प्रार्थना करती हैं कि वे उन्हें एक भरपूर वसंत प्रदान करें जो फसल से भरा हो, और वैवाहिक सद्भाव भी हो। वे देवी से अपने पति को अच्छे स्वास्थ्य और लंबे जीवन का आशीर्वाद देने का भी आग्रह करती हैं। वैसे तो यह त्योहार विवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है, लेकिन अविवाहित लड़कियां भी अच्छे पति की कामना से इसमें भाग लेती नजर आती हैं।
गणगौर की कहानी एक भव्य विदाई के बाद, पार्वती को भगवान शिव द्वारा उनके पैतृक घर से ले जाने के इर्द-गिर्द घूमती है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, पार्वती ने भगवान शिव को अपनी पत्नी के रूप में मनाने के लिए कई दिनों तक घोर तपस्या की थी। उसकी दृढ़ता और भक्ति ने वास्तव में उसे प्रेरित किया।
इसके अलावा एक अन्य कथा अनुसार माता पार्वती ने महिलाओं के सेवा से प्रसन्न होकर उनपर सुहाग रस बरसाया था। ऐसी मान्यता है कि इस दिन ईसर (शिवजी) गौरी (पार्वती) की पूजा तथा व्रत करने से सुहागन महिलाएं अखंड सौभाग्यवती होती है और कुवारी लड़कियों द्वारा इस व्रत को करने से उन्हें मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। गणगौर पर्व राजस्थान और इसके सीमावर्ती क्षेत्रों में काफी प्रसिद्ध है।
गणगौर त्यौहार का महत्त्व
गणगौर एक ऐसा पर्व है जिसे, हर स्त्री के द्वारा मनाया जाता है. इसमें कुवारी कन्या से लेकर, विवाहित स्त्री दोनों ही, पूरी विधी-विधान से गणगौर जिसमे, भगवान शिव व माता पार्वती का पूजन करती है. इस पूजन का महत्व कुवारी कन्या के लिये , अच्छे वर की कामना को लेकर रहता है जबकि, विवाहित स्त्री अपने पति की दीर्घायु के लिये होता है. जिसमे कुवारी कन्या पूरी तरह से तैयार होकर और, विवाहित स्त्री सोलह श्रंगार करके पुरे, सोलह दिन विधी-विधान से पूजन करती है.
गणगौर पूजन सामग्री (Gangaur Festival Poojan Items)
जिस तरह, इस पूजन का बहुत महत्व है उसी तरह, पूजा सामग्री का भी पूर्ण होना आवश्यक है.
- लकड़ी की चौकी/बाजोट/पाटा
- ताम्बे का कलश
- काली मिट्टी/होली की राख़
- दो मिट्टी के कुंडे/गमले
- मिट्टी का दीपक
- कुमकुम, चावल, हल्दी, मेहन्दी, गुलाल, अबीर, काजल
- घी
- फूल,दुब,आम के पत्ते
- पानी से भरा कलश
- पान के पत्ते
- नारियल
- सुपारी
- गणगौर के कपडे
- गेहू
- बॉस की टोकनी
- चुनरी का कपड़ा
उद्यापन की सामग्री
उपरोक्त सभी सामग्री, उद्यापन मे भी लगती है परन्तु, उसके अलावा भी कुछ सामग्री है जोकि, आखरी दिन उद्यापन मे आवश्यक होती है.
- सीरा (हलवा)
- पूड़ी
- गेहू
- आटे के गुने (फल)
- साड़ी
- सुहाग या सोलह श्रंगार का समान आदि.
गणगौर का औपचारिक मेला
राजस्थान अपने भव्य और रंगीन उत्सवों के लिए व्यापक रूप से जाना जाता है, और गणगौर मेला भी इससे अलग नहीं है। राज्य के विभिन्न कोनों में विभिन्न मेले आयोजित किए जाते हैं, दिलचस्प जुलूस उनका मुख्य आकर्षण होते हैं। परंपरागत रूप से, उत्कृष्ट पोशाक पहने और आभूषणों से सजी महिलाओं की एक टोली शहर के चारों ओर शिव और गौरी की सुशोभित मूर्तियों को अपने सिर पर रखती है। स्थानीय संगीतकारों के बैंड भी इस जुलूस का हिस्सा होते हैं क्योंकि वे पारंपरिक और लोक गीत बजाते हैं। इस आयोजन का समापन बावड़ी या जोहड़ (कुओं या जल जलाशयों) में मूर्तियों के विसर्जन के साथ होता है, जो देवी गौरी को विदाई देता है। अक्सर, शहर के दूर-दराज के इलाकों से भी लोग इन जुलूसों को देखने और भाग लेने के लिए आते हैं। राजस्थान में कुछ जनजातियाँ जीवन साथी चुनने के लिए गणगौर को एक शुभ अवसर के रूप में भी रखती हैं। इस लोकप्रिय धारणा के बाद, इन जनजातियों में अविवाहित पुरुष और महिलाएं एक साथ आते हैं और एक दूसरे के साथ बातचीत करते हैं। ऐसी मंडली के पीछे आम तौर पर शादी का मकसद होता है।
राजस्थान में गणगौर मेला देखने के लिए सबसे अच्छी जगह
सिटी पैलेस में जनानी-ड्योढ़ी से शुरू होकर और रास्ते में त्रिपोलिया बाजार, छोटी चौपड़, गणगौरी बाजार, चौगान स्टेडियम और तालकटोरा को कवर करते हुए पारंपरिक जुलूस जयपुर में बड़ी धूमधाम और धूमधाम से निकाला जाता है। देवी गणगौर की शाही बारात में ऊंट, रथ, बैलगाड़ी और नाचते हुए लोक कलाकार शामिल होते हैं। गणगौर उत्सव अंतिम दिन अपने चरम पर पहुंचता है जब आप चाहे किसी भी शहर में जाएं, आप राजस्थान की राजसी भूमि में गणगौर मेले की भव्यता से अछूते नहीं रहेंगे।
गणगौर पूजन की विधि क्या है (Gangaur Poojan Vidhi)

मारवाड़ी स्त्रियाँ सोलह दिन की गणगौर पूजती है. जिसमे मुख्य रूप से, विवाहित कन्या शादी के बाद की पहली होली पर, अपने माता-पिता के घर या सुसराल मे, सोलह दिन की गणगौर बिठाती है. यह गणगौर अकेली नही, जोड़े के साथ पूजी जाती है. अपने साथ अन्य सोलह कुवारी कन्याओ को भी, पूजन के लिये पूजा की सुपारी देकर निमंत्रण देती है. सोलह दिन गणगौर धूम-धाम से मनाती है अंत मे, उद्यापन कर गणगौर को विसर्जित कर देती है. फाल्गुन माह की पूर्णिमा, जिस दिन होलिका का दहन होता है उसके दूसरे दिन, पड़वा अर्थात् जिस दिन होली खेली जाती है उस दिन से, गणगौर की पूजा प्रारंभ होती है. ऐसी स्त्री जिसके विवाह के बाद कि, प्रथम होली है उनके घर गणगौर का पाटा/चौकी लगा कर, पूरे सोलह दिन उन्ही के घर गणगौर का पूजन किया जाता है.
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सर्वप्रथम चौकी लगा कर, उस पर साथिया बना कर, पूजन किया जाता है. जिसके उपरान्त पानी से भरा कलश, उस पर पान के पाच पत्ते, उस पर नारियल रखते है. ऐसा कलश चौकी के, दाहिनी ओर रखते है.
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अब चौकी पर सवा रूपया और, सुपारी (गणेशजी स्वरूप) रख कर पूजन करते है.
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फिर चौकी पर, होली की राख या काली मिट्टी से, सोलह छोटी-छोटी पिंडी बना कर उसे, पाटे/चौकी पर रखा जाता. उसके बाद पानी से, छीटे देकर कुमकुम-चावल से, पूजा की जाती है.
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दीवार पर एक पेपर लगा कर, कुवारी कन्या आठ-आठ और विवाहिता सोलह-सोलह टिक्की क्रमशः कुमकुम, हल्दी, मेहन्दी, काजल की लगाती है.
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उसके बाद गणगौर के गीत गाये जाते है, और पानी का कलश साथ रख, हाथ मे दुब लेकर, जोड़े से सोलह बार, गणगौर के गीत के साथ पूजन करती है.
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तदुपरान्त गणगौर, कहानी गणेश जी की, कहानी कहती है. उसके बाद पाटे के गीत गाकर, उसे प्रणाम कर भगवान सूर्यनारायण को, जल चड़ा कर अर्क देती है.
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ऐसी पूजन वैसे तो, पूरे सोलह दिन करते है परन्तु, शुरू के सात दिन ऐसे, पूजन के बाद सातवे दिन सीतला सप्तमी के दिन सायंकाल मे, गाजे-बाजे के साथ गणगौर भगवान व दो मिट्टी के, कुंडे कुमार के यहा से लाते है.
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अष्टमी से गणगौर की तीज तक, हर सुबह बिजोरा जो की फूलो का बनता है. उसकी और जो दो कुंडे है उसमे, गेहू डालकर ज्वारे बोये जाते है. गणगौर की जिसमे ईसर जी (भगवान शिव) – गणगौर माता (पार्वती माता) के , मालन, माली ऐसे दो जोड़े और एक विमलदास जी ऐसी कुल पांच प्रतिमाए होती है. इन सभी का पूजन होता है , प्रतिदिन, और गणगौर की तीज को उद्यापन होता है और सभी चीज़ विसर्जित होती है.
गणगौर पूजते समय का गीत (Gangaur Geet)
यह गीत शुरू मे एक बार बोला जाता है और गणगौर पूजना प्रारम्भ किया जाता है –
प्रारंभ का गीत –
गोर रे, गणगौर माता खोल ये , किवाड़ी
बाहर उबी थारी पूजन वाली,
पूजो ये, पुजारन माता कायर मांगू
अन्न मांगू धन मांगू , लाज मांगू लक्ष्मी मांगू
राई सी भोजाई मंगू.
कान कुवर सो, बीरो मांगू इतनो परिवार मांगू..
उसके बाद सोलह बार गणगौर के गीत से गणगौर पूजी जाती है.
सोलह बार पूजन का गीत –
गौर-गौर गणपति ईसर पूजे, पार्वती
पार्वती का आला टीला, गोर का सोना का टीला.
टीला दे, टमका दे, राजा रानी बरत करे.
करता करता, आस आयो मास
आयो, खेरे खांडे लाडू लायो,
लाडू ले बीरा ने दियो, बीरों ले गटकायों.
साडी मे सिंगोड़ा, बाड़ी मे बिजोरा,
सान मान सोला, ईसर गोरजा.
दोनों को जोड़ा ,रानी पूजे राज मे,
दोनों का सुहाग मे.
रानी को राज घटतो जाय, म्हारों सुहाग बढ़तों जाय
किडी किडी किडो दे,
किडी थारी जात दे,
जात पड़ी गुजरात दे,
गुजरात थारो पानी आयो,
दे दे खंबा पानी आयो,
आखा फूल कमल की डाली,
मालीजी दुब दो, दुब की डाल दो
डाल की किरण, दो किरण मन्जे
एक,दो,तीन,चार,पांच,छ:,सात,आठ,नौ,दस,ग्यारह,बारह,
तेरह, चौदह,पंद्रह,सोलह.
सोलह बार पूरी गणगौर पूजने के बाद पाटे के गीत गाते है
पाटा धोने का गीत –
पाटो धोय पाटो धोय, बीरा की बहन पाटो धो,
पाटो ऊपर पीलो पान, म्हे जास्या बीरा की जान.
जान जास्या, पान जास्या, बीरा ने परवान जास्या
अली गली मे, साप जाये, भाभी तेरो बाप जाये.
अली गली गाय जाये, भाभी तेरी माय जाये.
दूध मे डोरों , म्हारों भाई गोरो
खाट पे खाजा , म्हारों भाई राजा
थाली मे जीरा म्हारों भाई हीरा
थाली मे है, पताशा बीरा करे तमाशा
ओखली मे धानी छोरिया की सासु कानी..
ओडो खोडो का गीत –
ओडो छे खोडो छे घुघराए , रानियारे माथे मोर.
ईसरदास जी, गोरा छे घुघराए रानियारे माथे मोर..
(इसी तरह अपने घर वालो के नाम लेना है )
कार्तिक माक की शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन गाय की पूजा की जाती हैं जिसे गोपाष्टमी कहा जाता है.
गणगौर अरग के गीत
पूजन के बाद, सुरजनारायण भगवान को जल चड़ा कर गीत गाया जाता है.
अरग का गीत –
अलखल-अलखल नदिया बहे छे
यो पानी कहा जायेगो
आधा ईसर न्हायेगो
सात की सुई पचास का धागा
सीदे रे दरजी का बेटा
ईसरजी का बागा
सिमता सिमता दस दिन लग्या
ईसरजी थे घरा पधारों गोरा जायो,
बेटो अरदा तानु परदा
हरिया गोबर की गोली देसु
मोतिया चौक पुरासू
एक,दो,तीन,चार,पांच,छ:,सात,आठ,नौ,दस,ग्यारह,बारह,
तेरह, चौदह,पंद्रह,सोलह.
ज्येष्ठ माह की एकादशी के दिन पांडू पुत्र भीम ने रखा था निर्जला उपवास, इसलिए इसे भीमसेन एकादशी कहा जाता है.
गणगौर को पानी पिलाने का गीत
सप्तमी से, गणगौर आने के बाद प्रतिदिन तीज तक (अमावस्या छोड़ कर) शाम मे, गणगौर घुमाने ले जाते है. पानी पिलाते और गीत गाते हुए, मुहावरे व दोहे सुनाते है.
पानी पिलाने का गीत –
म्हारी गोर तिसाई ओ राज घाटारी मुकुट करो
बिरमादासजी राइसरदास ओ राज घाटारी मुकुट करो
म्हारी गोर तिसाई ओर राज
बिरमादासजी रा कानीरामजी ओ राज घाटारी
मुकुट करो म्हारी गोर तिसाई ओ राज
म्हारी गोर ने ठंडो सो पानी तो प्यावो ओ राज घाटारी मुकुट करो..
(इसमें परिवार के पुरुषो के नाम क्रमशः लेते जायेंगे. )
गणगौर उद्यापन की विधि (Gangaur Udhyapan Vidhi)
सोलह दिन की गणगौर के बाद, अंतिम दिन जो विवाहिता की गणगौर पूजी जाती है उसका उद्यापन किया जाता है.
विधि –
- आखरी दिन गुने(फल) सीरा , पूड़ी, गेहू गणगौर को चढ़ाये जाते है.
- आठ गुने चढा कर चार वापस लिये जाते है.
- गणगौर वाले दिन कवारी लड़किया और ब्यावली लड़किया दो बार गणगौर का पूजन करती है एक तो प्रतिदिन वाली और दूसरी बार मे अपने-अपने घर की परम्परा के अनुसार चढ़ावा चढ़ा कर पुनः पूजन किया जाता है उस दिन ऐसे दो बार पूजन होता है.
- दूसरी बार के पूजन से पहले ब्यावाली स्त्रिया चोलिया रखती है ,जिसमे पपड़ी या गुने(फल) रखे जाते है. उसमे सोलह फल खुद के,सोलह फल भाई के,सोलह जवाई की और सोलह फल सास के रहते है.
- चोले के उपर साड़ी व सुहाग का समान रखे. पूजा करने के बाद चोले पर हाथ फिराते है.
- शाम मे सूरज ढलने से पूर्व गाजे-बाजे से गणगौर को विसर्जित करने जाते है और जितना चढ़ावा आता है उसे कथानुसार माली को दे दिया जाता है.
- गणगौर विसर्जित करने के बाद घर आकर पांच बधावे के गीत गाते है.
गणगौर की व्रत कथा (gangaur katha in hindi & gangaur vrat katha)
प्राचीन समय की बात हैं एक बार नारद के साथ शिव पार्वती पृथ्वी लोक में घूमने के लिए निकले. चैत्र शुक्ल तीज के दिन घुमते घूमते वे एक गाँव पहुचे.
शिव पार्वती के आने की खबर सुनकर उस गाँव वालों में अति प्रसन्नता का भाव था. गाँव के ऊँचे घराने की औरते उनके भोजन की तैयारी में लग गयी. निम्न परिवार की स्त्रियों चावल और अक्षत लेकर शिव पार्वती की पूजा की. पार्वती उनकी श्रद्धा से प्रसन्न हुई तथा उन्होंने सम्पूर्ण सुहाग रस उन्हें दे दिया.
अब गाँव के उच्च परिवार की महिलाएं स्वर्ण जड़ित थाल में शिव पार्वती के खाने के लिए पकवान तैयार कर लाई. इन्हें देख शिवजी को शंका हुई तो उन्होंने गौरी से कहा आपने सारा सुहाग उन्हें दे दिया अब आप इन्हें क्या दोगी.
पार्वती भोलेनाथ से कहने लगी आप व्यर्थ की चिंता ना करे उन्हें उपरी रस दिया हैं तथा इन्हें अपनी अंगुली के रक्त का सुहाग दूंगी जो मेरे भाग्य की तरह इन्हें भी सौभाग्यवती बनाएगा.
जब स्त्रियों ने पूजन किया तो पार्वती जी ने उस पर रक्त का छीटा छिडककर सौभाग्य का आशीर्वाद दिया. इसके बाद वे नदी पर गयी तथा स्नानादि करने के बाद बालू की शिव पार्वती की मूर्ति बनाकर उनको भोजन कराने लगे.